संस्कार गीतों की श्रृंखला में आगे और जानते हैं
पिछले ब्लॉग में मैंने संस्कार गीतों की श्रृंखला रखी उसी को आगे बढ़ाते हुए अब मैं एक महत्वपूर्ण संस्कार के बारे में बताना चाहती हूं बालक का एक महत्वपूर्ण संस्कार होता है उपनयन संस्कार उसे जनेऊ पहनाया जाता है उपनयन संस्कार में बालक को शिक्षा दी जाती है महिलाएं बरुआ गीत गाती हैं इस गीत को रात में नहीं गाया जाता ऐसा बड़े लोग बताते हैं। बरुआ गीत के बोल हैं:- आरे आरे कतिक कुंमरवा चईत कब लगी है हो कबय आजा जइहै बजरिआ कपडा लइ अइहय हो कबय आजी रगिहय पिअरिया भिखिआ विधि डरिहय हो आरे आरे कतिक कुंमरवा । जब बालक का उपनयन संस्कार होता है तव बरुआ रिसाने की रस्म होती है जिसमे मामा भांजे को मनाते हैं उसी अवसर का बहुत ही मनमोहक गीत है बरुआ रिसाने का गीत :- मोरे रामा रिसाने जाएं मनाए नहीं मानै -2 रामा मनामन तीन गये है -2 ब्रह्मा विष्णु महेश मनाए नहीं मानै उपनयन संस्कार के बाद वैवाहिक संस्कार गीत होते हैं जिसमें लड़की और लड़के के वैवाहिक संस्कार के अलग-अलग गीत होते हैं। वैवाहिक संस्कारों की शुरुआत माटी मांगर से होती है सभी महिलाएं इकट्ठे होकर जाती हैं और मिट्टी खोदकर...