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को मोरे अगने मा दर खानय

जब हमारे घर मे व्रतबंध या विवाह संस्कार होता है उस समय मडवा डालने की रस्म होती है, परिवार और गांव के लोग   मड़वा डालने आते हैं तब हमारी बहने उस अवसर का बहुत सुंदर गीत गाती हैं वही पारंपरिक लोकगीत मैं आप सबके बीच प्रस्तुत कर रही हूं                     मड़वा गीत को मोरे अगने मा दर खनय को रे वेदन पढ़य हो को मोरे बाटय हरदिआ त मडये मा शुभ करय हो आजा मोरे मडये के दर खनय पंडित वेदन पढ़य हो आजी मोरी बाटय हरदिआ त मडये मा शुभ करय हो    बाबू मोरे मडये के दर खनय पंडित वेदन पढ़य हो माया मोरी बाटय हरदिआ त मडये मा शुभ करय हो इसी तरह घर के जो सदस्य होते हैं उन सभी का संबोधन करके जीत गया जाता है इन गीतों के बिना हमारे उत्सव और कोई भी संस्कार फीके लगते हैं यह हमारी लोक संस्कृति की जान होते हैं इन गीतों के एक-एक शब्द में भाव छुपा होता है  यह गीत सदियों से हमारे लोक उत्सव के महत्वपूर्ण अंग रहे हैं इन गीतों का महत्व आज भी उतना ही है जितना पहले था