बघेली लोक संस्कारों से परिचय......!

बघेली विंध्य क्षेत्र में बोली जाने बाली भाषा है जो बहुत समृद्धि शाली है । जिसका अपना साहित्य है अपनी लोक संस्कृति है यह अपने आप में परिपूर्ण है ,इसके लोकगीत जन जन में व्याप्त हैं । हमारे बघेली लोक रीति-रिवाज मे हर अवसर के गीत  है, जन्म से लेकर वानप्रस्थ तक के गीत होते हैं इन गीत की विशालता यह है की गीतों को सुनकर अवसर का अंदाजा लगाया जा सकता है ।
इन गीतों को सरल भासा मे निम्न प्रकार से गाया जाता है ...
.1)   संस्कार परक
.2)   ऋतु परक ,
.3)  और जाति परक

1.) संस्कार परक :-
 
संस्कार परक वह गीत होते है  जिन्हे जन्म होने से लेकर विवाह संस्कार के पावन अवसरो पर गाया जता है ।
जैसे जब शिशु मॉ के गर्भ मे आता है लोग उस समय अपनी खुशी इन संस्कार गीतो के माधयम से व्यक्त करते है
और जब शिशु का जन्म होता है उस समय जन्मोत्सव के गीत घर मे गूजने लगते है ।

जैसे जन्म मे सोहर , बधाई , कुआ पूजन , गैल्हाई  , कलश उतारने का गीत , दादरा ( बधाई दादरा ) और बहोत
उसी प्रकार अन्नप्रासन संस्कार , मुंड्न संस्कार , कंछेदन संस्कर , जनेउ संस्कार मे भी संस्कार परक गीत हर घर मे
गाये जाते है ।  हमारे बघेल खंड की विवह पधति विश्व मे जानी जाती है और विवाह संस्कार के हर अवसर के गीत है
और इन गीतो को सुन कर उस अवसर की पहचान की जासकती है ।



2.) ऋतु परक :-

ऋतु परक मौसम के अनुसार गाये जाने वाले गीत है जैसे बरसात के मौसम मे कजली , हिंदुली , सावन  गीत, झूला गीत गाए जाते हैं उसी प्रकार क्वार के महीने में और जब नवरात्रि आती है तो भगत गाया जाता है चैत के महीने में चैती गाई जाती हैं। सावन के महीने में सभी लड़कियां अपने मायके जाती है आम के पेड़ में झूला पड़ता है झूला झूलते हुए सभी सहेलियां जब गीत गाती है तो मन प्रफुल्लित हो जाता है हरियाली जिस तरह पूरे वातावरण में छाई होती है इस अवसर के गीत उसी तरह मन को प्रफुल्लित करते हैं इन गीतों का विशेष महत्व होता है कजली हिंदू ली लोकगीतों में संस्कार के साथ-साथ प्राकृतिक वातावरण का भी इन गीतों में वर्णन होता है  बिरहनी की विरह व्यथा का वर्णन भी इन गीतों में किया जाता है।


3.) जाति परक गीत

जाति परक गीत जो वहां के स्थानीय निवासियों (जनजातियों )द्वारा गाए जाते हैं। शैला ,कर्मा, दहका, ददरिया सजनई जनजातीय बिरादरी द्वारा गाए जाने वाले गीत हैं और भी बहुत प्रकार से गीत इनके द्वारा गाए जाते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित हुए हैं। यादव समाज द्वारा बिरहा बहुत ही लोकप्रिय लोकगीत होता है जिसमें सवाल जवाब होते हैं ।बसदेवा समाज द्वारा बसदेवा गीत गाया जाता है ट्रक में काम करने वाली रेजाओ द्वारा टप्पा गीत गाया जाता है इन सभी गीतों में लोगों की आत्मा बसती है यह ऐसे गीत होते हैं जिसे सुनकर लोग अपने हाथी गुनगुना उठते हैं।




"बघेली लोक गीतों का यह संक्षिप्त परिचय है अब अगले ब्लॉग में जो श्रृंखला होगी एक-एक करके विस्तार से मैं उन गीतों का परिचय आप सभी के बीच रखूंगी  आप सबको बघेली लोक संस्कृत, लोक गीत, लोक संस्कारों के बारे में परिचय कराऊंगी। आप सब के समर्थन की आवश्यकता हमेशा रहेगी बहुत-बहुत धन्यवाद "



                         

Comments

  1. बहुत सुन्दर जानकारी दी है आपने

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  2. Please give us more updates regarding our culture

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