भरि -भरि आवै मोरी अखिआ गलिआ नहीं सूझय हो

यह बघेली  का बहुत ही मार्मिक  संस्कार परक लोकगीत है जब बेटी का विबाह होता है उसकी विदाई होती है तब बेटी अपने मन के भाव ब्यक्त करती है बहुत ही भावुक गीत है इसे जो भी जमझते हैँ वो भी सुनकर भावुक हो जाते हैँ उनकी आँखो में आंसू आ जाते हैं आशा है आप सभी का स्नेह इस गीत को मिलेगा 🙏🙏

                अंजुरी
         *************

भरि -भरि आबै मोरी अखिआ गलिआ नहीं सुझय हो

आगे के घोडीला दुलेरुआ ता जमरे दुलहिन देइ हो
पलटि के पाछे निहारय त काहे धना अनमन हो

धौ सुधि आई मायल केरी धौ रे बाबुल केरी हो
धौ सुधि आई विरन के गलिआ नहीं सूझय हो


नहीं सुधि आई मायल केरी नहीं रे बाबुल केरी हो
नहीं सुधि आई विरन के गलिआ नहीं सूझय हो

छोडी आयेव अरबा कलेउना अगन भर सखिआ हो
छोड़ी आयेव लहुरी बहिनिआ गलिआ नहीं सूझय हो

ये गीत हमारी लोक संस्कृति की पहचान है हमारे कोई भी उत्सव इनके विना सूने लगते हैं ये हमारी लोक संस्कृत के सजक पहरेदार भी होते हैं
यह जीत हमारी आने वाली पीढ़ी को मिल सके इसलिए मैं  इन्हे संरक्षित करने का प्रयास कर रही हूं आप सबके सहयोग से मैं इन्हे जन -जन तक पहुंचा
पाउंगी अपना स्नेह बनाये रखें बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏🙏

Comments

Popular posts from this blog

लिरिक्स । ( सोहाग ) सोने के सुपलइया बनबाबा मोरी माया | बघेली लोकगीत

तोरी महिमा को जानी जगदम्बा भवानी

संस्कार गीतों की श्रृंखला में आगे और जानते हैं