दसरथ सुमन मनोहर चारी (गारी )बघेली लोक गीत

                                                  गारी (बघेली लोकगीत )

आज आधुनिकता की दौड़ मे हम अपनी पुरानी सस्कृति को भूलते जा रहे हैँ एक समय वो था जब लड़की का विवाह होता था बारात जब आती थी तब समधी की पाँव धुलाई होती थी और उनके  स्वागत  सत्कार का तरीका बहुत सुन्दर होता था जब बारातियों को भोजन कराया जाता था तब पंगत बैठती थी   तरह तरह के व्यंजन परोसे जाते थे एक विशेष बात यह थी की बहनो द्वारा बारातियों के  स्वागत में गारी  गीत गाया जाता था | और बाराती बड़े प्रेम से इन गीतों को सुनकर भोजन करते थे | 
ऐसे ही भाव इस गीत के माध्यम से मै प्रस्तुतु कर रही हूँ | आप सब को  इस गीत के  माध्यम से हमारी पारम्परिक झलक दिखाई दे गई | 



दशरथ सुमन मनोहर चारी जनक भुवन पग ढारी की हाँ जी हो जनक भुवन पग
ढारी

दारि भात मैदा कई रोटी घिउ सुरहिन के चभोकी कि हाँ जी हो घिउ सुरहिन के चभोकी

बरा औ मुगउरा दहिया दधि बोरी रिकमछ लऊग बघारी की हां जी हो रिकमछ लउग बघारी

करू रे करइला के बनी तरकारी निब्बू धरे चरिउ  फाकी कि हाँ जी हो निब्बू धरे चरिउ  फाकी

जेमन बइठे हैं चरिउ भाई समधी बइठे जघ जोरी कि हाँ जी हो
समधी बइठे जघ जोरी

मेऱ मेऱ केरे ब्यजन बने हय स्वाद बरन नहीं जाइ कि हाँ जी हो
स्वाद बरन नहीं जाइ


यह गीत समधी और बरातियों के स्वागत मे गाया जाता है ये गीत हमारे खुशी को बढ़ा देते हैं 
प्रेम और मनुहार की गारी मन मे उमंग भर देती है
यह गीत हमारी लोक संस्कृति कि सम्पन्नता को दर्शाते हैं 

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