निकलि चलबय तोहरे संघ मा सवरिया

लोक गीत यानी ऐसा गीत जो हमारे जीवन में रचा बसा हो और ये गीत हम सब किसी ना किसी उत्सव में सुनते आ रहे हैं। कार्यक्रम का स्वरुप बदला पर ये गीत नहीं बदले एक पीढी से दूसरे पीढ़ी को हस्तांतरित होते चले आ रहे हैं ऐसा ही एक पारंपरिक गीत मैं आप सबके लिए लेकर आई हूं जिसमें अपने माटी की खुशबू रची बसी है
              
                         दादरा
निकलि चलबय तोहरे संघ मा सबरिया

तोहरे बिना नही भावे महलिआ
निकलि चलबय तोहरे संघ मा सबरिया

जनक पूरी मा हम ना रहवय
संघ तोरे चलबय -3 पीतांबर धरिया
निकलि चलबय तोहरे संघ मा सबरिया


सरयू किनारे एक महल बनउबय
दुनउ जने बइठव -3औ लेबय लहरिआ
निकलि चलबय तोहरे संघ मा सबरिया

लोक लाजि कुल कानि न मानव
छोड़ छाडि कुल का -2 चलव तोहरे संघ मा
निकलि चलबय तोहरे संघ मा सबरिया 

Comments

Popular posts from this blog

लिरिक्स । ( सोहाग ) सोने के सुपलइया बनबाबा मोरी माया | बघेली लोकगीत

तोरी महिमा को जानी जगदम्बा भवानी

संस्कार गीतों की श्रृंखला में आगे और जानते हैं